शब्दांश तर्क
अपने लेख ‘प्लेन लैंड ऑफ लिटरेचर’ में वे कहते हैं- ‘जब कोई एक एकांतिक दृष्टिकोण से किसी गंभीर सवाल पर सलाह देता है, तो दिल बहुत कठोर हो जाता है। एकरसता मूल रूप से संकीर्णता है। … सीमा के भीतर बंद रहने के लिए, जैसा कि यह मनुष्य की प्रकृति है, उसी तरह यह सीमा के संकीर्ण बंधन को पार करने के लिए मनुष्य की प्रकृति है, पहला एकात्मक है, दूसरा व्यापक है। ‘साहित्य और अभिव्यक्ति को मुक्त करने के उनके दृष्टिकोण से स्पष्ट है कि वे अपने लेखन को प्रगतिशील सरोकारों से जोड़ते हैं।
निराला ने जहाँ एक ओर वर्णाश्रम व्यवस्था की जमकर आलोचना की, वहीं समाजवाद के व्याकरण में समानता की भी पुरजोर वकालत की। State वर्णाश्रम धर्म की वर्तमान स्थिति ’नामक निबंध में सामाजिक न्याय के आह्वान को महसूस करते हुए वे लिखते हैं, India भारत के सभी सामाजिक बलों का यह एकीकरण शूद्रों और अंत्यजों का भोर है। … भारतवर्ष का यह युग शूद्र-शक्ति के उत्थान का युग है। और देश के पुनरुत्थान को उसके जागरण की प्रतीक्षा है।
निराला ने रूढ़िवादी और परंपरा की जड़ों पर हमला किया है। निराला के इस विरोध का परिणाम उनके सामाजिक जीवन पर भी पड़ा। निराला ने uri चतुरी चमार ’में लिखा है – गुरुमुख ब्राह्मणों आदि ने मेरे घड़े का पानी छोड़ दिया है। गाँव और आस-पास के लोगों ने अपने-अपने पिता और पिता को समझाया था कि ‘बाबा कहते हैं, मैं कोई छोटा-मोटा जल-पंडे नहीं हूँ, जो सबको पानी पिलाए, अर्रे-गारे नत्थू-खैर।’
दिलचस्प बात यह है कि uri चतुरी चमार ’की कहानी को निराला की आत्ममुग्धता की तरह माना गया है। यह कहा जा सकता है कि निराला अपने शब्दों में नैतिकता का एकाधिकार नहीं बनाते हैं, लेकिन नैतिक पूर्वाग्रहों के साथ एक निडर मुठभेड़ उनकी कलम और उनके व्यक्तित्व दोनों का अटूट हिस्सा है।
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