चौपाल: प्रकृति के साथ खेलना
चाहे वह केदारनाथ की आपदा हो या चमोली में ग्लेशियरों का टूटना, यह मानव जीवन को चेतावनी दे रहा है कि प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को रोका जाए और प्रकृति को बचाने का असली काम शुरू किया जाए। विकास की अंधी दौड़ में, हमने पर्यावरण के बारे में सोचना बंद कर दिया है। इसका खामियाजा हमें और आने वाली पीढ़ी को भुगतना पड़ेगा।
पर्वतीय क्षेत्रों में लगातार पहाड़ों को काटकर और जंगलों को नष्ट करके कंक्रीट के जंगलों को वहां खड़ा किया जा रहा है। इसका खामियाजा आज हमारे सामने है। जितना हम अपनी सुविधा के लिए प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहे हैं, उतनी ही तेजी से प्रकृति भी इसका जवाब दे रही है। पृथ्वी लगातार गर्म हो रही है।
हर मौसम में प्राकृतिक आपदाएं होती हैं। यही नहीं, पहाड़ के जानवरों और पक्षियों का जीवन भी खतरे में है। सरकार और प्रशासन को पर्यावरण से संबंधित कार्यों को मजबूत करना होगा। साथ ही, प्रत्येक व्यक्ति को अपना कर्तव्य भी निभाना चाहिए ताकि हम मिलकर पर्यावरण को बचा सकें।
आशीष, जामिया विश्वविद्यालय, दिल्ली
विकास का पैमाना
उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियल टूटने से व्यापक तबाही हुई। इससे दो बिजली परियोजनाएं नष्ट हो गईं और बड़ी संख्या में लोग लापता हो गए। पर्यावरणविद् ऐसी आपदाओं की चेतावनी देते रहे हैं, लेकिन विकास की तथाकथित अंधी दौड़ ने मनुष्य को इतना स्वार्थी बना दिया है कि वह खुद ही विनाश का रास्ता खोल रहा है।
अभी भी हमारे पास विकास की अपनी परिभाषा को व्यापक बनाने का समय है, क्योंकि हर क्षेत्र और पर्यावरण की अपनी विशेषता है। यदि विकास और समृद्धि को ध्यान में रखते हुए हासिल किया जाता है, तो यह न केवल प्रकृति पर बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बहुत बड़ा उपकार होगा।
‘युवराज पल्लव, मेरठ
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